(पढने वाली शरीरधारी आत्माओं को मेरा नमन !)
कबीर गुरु की याद में:
मंदिर को छोड़ मस्जिद को छोडो, नाहीं कहीं मुज़ाका है
दिल मत तोड़ किसी का बन्दे, यह तो घर खास खुदा का है ||
मंदिर में तो बुत धरे हैं, मस्जिद सफां-सफाई है
दिल दरिया में झिलमिल झलके, सोई नूर खुदाई है ||
तो छोड़ जुल्मत की न्यामत को, बेहतर सबसे फांका है
दिल मत तोड़ किसी का बन्दे, यह तो घर खास खुदा का है ||
फिकिर तो सबको खा गयी, फिकिर ही सबका पीर
फिकिर का फांका करे, ताका नाम फ़कीर ||
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